सूबे के 608 इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट कॉलेजों में करीब 20 हजार शिक्षक फर्जी हैं। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय की एक जांच में यह तथ्य सामने आया है। विवि से मिली जानकारी के अनुसार निजी कॉलेजों में तकरीबन कुल 41 हजार शिक्षक नियुक्त हैं जिनमें से लगभग आधे फर्जी पाए गए हैं।
गुरुवार को कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक की अध्यक्षता में हुई संबद्धता समिति की बैठक में इस डेफिशिएंसी रिपोर्ट को जब सभी सदस्यों के सामने रखा गया तो वे हैरान रह गए। विवि ने अब कॉलेजों से 16 मई तक उनका स्पष्टीकरण मांगा है। इसके बाद यह रिपोर्ट ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) को भेजी जाएगी।
कुलपति ने बताया कि संबद्ध संस्थानों से जुड़ी जानकारियों को वेबसाइट पर पब्लिक डोमेन पर उपलब्ध कराया जा रहा है। कॉलेजों से ऑनलाइन डाटा लेने से सारा फर्जीवाड़ा सामने आ गया। जो कॉलेज संतोषजनक जवाब नहीं दे पाएंगे उनके खिलाफ संबद्धता समाप्त करने तक की कार्रवाई होगी।
विवि केडिप्टी रजिस्ट्रार (संबद्धता) अनिल कुमार शुक्ला ने बताया कि विश्वविद्यालय कॉलेजों को इस आधार पर संबद्धता देता है कि वह एआईसीटीई के मानक पूरे कर रहे हैं।
कॉलेज की स्थापना के समय तो विश्वविद्यालय भौतिक सत्यापन करता है लेकिन बाद में संबद्धता का विस्तार इसी आधार होता रहता है कि मानक पूरे होंगे। लेकिन जब कॉलेजों के खिलाफ शिकायतें बढ़ने लगीं तो विवि ने इसे गंभीरता से लिया।
यह तय हुआ कि कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति व अनुमोदन विश्वविद्यालय केअधीन है, इसलिए विश्वविद्यालय इनका सत्यापन कराएगा। इसीलिए शिक्षकों की जानकारी केसाथ पैन भी मांगा गया। विवि अब संबद्धता से जुड़ी सभी जानकारियां ऑनलाइन जुटा रहा है।
4500 फर्जी शिक्षक सिर्फ लखनऊ से ही
एकेटीयू से संबद्घ कॉलेजों में जिन 20 हजार फर्जी शिक्षकों को पकड़ा गया उनमें से 4500 के करीब सिर्फ लखनऊ और आसपास के जिलों जैसे बाराबंकी, सीतापुर आदि जगहों के शिक्षण संस्थानों से ही होने की संभावना है। विवि के प्रवक्ता आशीष मिश्रा ने बताया कि फिलहाल कॉलेज वार इनकी सूची तैयार की जा रही है। 16 मई को सभी का स्पष्टीकरण आने के बाद फाइनल सूची तैयार होगी।
विवि को काफी समय से कॉलेजों में फर्जी शिक्षकों की जानकारी मिल रही थी। कॉलेज जिन शिक्षकों का अनुमोदन कराते हैं उनकी जगह दूसरों से पढ़वाते हैं या जितने शिक्षकों का अनुमोदन कराते हैं उनसे कम को नियुक्त करते हैं। इस नाते पढ़ाई का स्तर भी गिर रहा है।
प्रो. पाठक ने बताया कि इस बार सभी संस्थानों से विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए प्रदत्त मान्यता के बारे में सूचनाएं मांगी गई थी।
निर्देश दिया गया था कि वह शिक्षकों का ब्यौरा ऑनलाइन पोर्टल के जरिये दें। साथ ही सभी शिक्षकों के परमानेंट अकाउंट नंबर (पैन), मोबाइल नंबर और ई-मेल एड्रेस देना अनिवार्य किया गया।
कॉलेजों से आए पैन नंबर की जब आयकर विभाग से जानकारी ली गई तो पता चला कि 41 हजार में से 20 हजार पैन फर्जी हैं।
अनिल शुक्ला ने बताया कि फिलहाल कॉलेजों को स्पष्टीकरण देने का समय दिया गया है इसलिए उनके नाम उजागर नहीं किए गए। लेकिन विवि से संबद्ध 608 में से अधिकतर कॉलेजों में यह फर्जीवाड़ा है।
यह बात अलग है कि किसी कॉलेज में पांच फीसदी शिक्षकों की डिटेल फर्जी मिली तो कुछ में 100 फीसदी शिक्षकों की डिटेल फर्जी है।
इनमें अधिकतर ऐसे कॉलेज हैं जहां प्रवेश के लिए कम छात्र जाते हैं लेकिन बहुत से नामी व बड़े कॉलेजों ने भी शिक्षकों का ब्यौरा देने में गड़बड़ी की है।
गुरुवार को कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक की अध्यक्षता में हुई संबद्धता समिति की बैठक में इस डेफिशिएंसी रिपोर्ट को जब सभी सदस्यों के सामने रखा गया तो वे हैरान रह गए। विवि ने अब कॉलेजों से 16 मई तक उनका स्पष्टीकरण मांगा है। इसके बाद यह रिपोर्ट ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) को भेजी जाएगी।
कुलपति ने बताया कि संबद्ध संस्थानों से जुड़ी जानकारियों को वेबसाइट पर पब्लिक डोमेन पर उपलब्ध कराया जा रहा है। कॉलेजों से ऑनलाइन डाटा लेने से सारा फर्जीवाड़ा सामने आ गया। जो कॉलेज संतोषजनक जवाब नहीं दे पाएंगे उनके खिलाफ संबद्धता समाप्त करने तक की कार्रवाई होगी।
विवि केडिप्टी रजिस्ट्रार (संबद्धता) अनिल कुमार शुक्ला ने बताया कि विश्वविद्यालय कॉलेजों को इस आधार पर संबद्धता देता है कि वह एआईसीटीई के मानक पूरे कर रहे हैं।
कॉलेज की स्थापना के समय तो विश्वविद्यालय भौतिक सत्यापन करता है लेकिन बाद में संबद्धता का विस्तार इसी आधार होता रहता है कि मानक पूरे होंगे। लेकिन जब कॉलेजों के खिलाफ शिकायतें बढ़ने लगीं तो विवि ने इसे गंभीरता से लिया।
यह तय हुआ कि कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति व अनुमोदन विश्वविद्यालय केअधीन है, इसलिए विश्वविद्यालय इनका सत्यापन कराएगा। इसीलिए शिक्षकों की जानकारी केसाथ पैन भी मांगा गया। विवि अब संबद्धता से जुड़ी सभी जानकारियां ऑनलाइन जुटा रहा है।
4500 फर्जी शिक्षक सिर्फ लखनऊ से ही
एकेटीयू से संबद्घ कॉलेजों में जिन 20 हजार फर्जी शिक्षकों को पकड़ा गया उनमें से 4500 के करीब सिर्फ लखनऊ और आसपास के जिलों जैसे बाराबंकी, सीतापुर आदि जगहों के शिक्षण संस्थानों से ही होने की संभावना है। विवि के प्रवक्ता आशीष मिश्रा ने बताया कि फिलहाल कॉलेज वार इनकी सूची तैयार की जा रही है। 16 मई को सभी का स्पष्टीकरण आने के बाद फाइनल सूची तैयार होगी।
विवि को काफी समय से कॉलेजों में फर्जी शिक्षकों की जानकारी मिल रही थी। कॉलेज जिन शिक्षकों का अनुमोदन कराते हैं उनकी जगह दूसरों से पढ़वाते हैं या जितने शिक्षकों का अनुमोदन कराते हैं उनसे कम को नियुक्त करते हैं। इस नाते पढ़ाई का स्तर भी गिर रहा है।
प्रो. पाठक ने बताया कि इस बार सभी संस्थानों से विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए प्रदत्त मान्यता के बारे में सूचनाएं मांगी गई थी।
निर्देश दिया गया था कि वह शिक्षकों का ब्यौरा ऑनलाइन पोर्टल के जरिये दें। साथ ही सभी शिक्षकों के परमानेंट अकाउंट नंबर (पैन), मोबाइल नंबर और ई-मेल एड्रेस देना अनिवार्य किया गया।
कॉलेजों से आए पैन नंबर की जब आयकर विभाग से जानकारी ली गई तो पता चला कि 41 हजार में से 20 हजार पैन फर्जी हैं।
अनिल शुक्ला ने बताया कि फिलहाल कॉलेजों को स्पष्टीकरण देने का समय दिया गया है इसलिए उनके नाम उजागर नहीं किए गए। लेकिन विवि से संबद्ध 608 में से अधिकतर कॉलेजों में यह फर्जीवाड़ा है।
यह बात अलग है कि किसी कॉलेज में पांच फीसदी शिक्षकों की डिटेल फर्जी मिली तो कुछ में 100 फीसदी शिक्षकों की डिटेल फर्जी है।
इनमें अधिकतर ऐसे कॉलेज हैं जहां प्रवेश के लिए कम छात्र जाते हैं लेकिन बहुत से नामी व बड़े कॉलेजों ने भी शिक्षकों का ब्यौरा देने में गड़बड़ी की है।
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