अधिकतर लोग परिस्थितियों के आगे घुटने टेक देते हैं। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो परिस्थितियों से डटकर मुकाबला करते हैं और जीत कर दिखाते हैं। ऐसी ही कुछ कहानी इस शख्स की है। जिसने अथाह गरीबी के बाद भी खुद को साबित किया। यहां तक की उसके टैलेंट का लोहा सरकार तक ने माना।
एक तरफ जहां एक चायवाला देश का प्रधानमंत्री बनकर खुद को साबित कर चुका है, वहीं ये दूसरा चायवाला भी प्रतिभा के मामले में किसी से पीछे नहीं है।
28 साल के इस आदमी ने चाय बेचकर पढ़ाई की, और चार्टेड अकाउंटेंट की परीक्षा भी पास कर ली। और तो और उसे महाराष्ट्र सरकार ने अर्न एंड लर्न स्कीम का ब्रांड एंबेसडर भी बना दिया। आखिर ये व्यक्ति इस मुकाम तक कैसे पहुंचा और कैसे इतनी कामयाबी की कहानी गढ़ी। आगे की स्लाइड में पढ़े इस चायवाले की कामयाबी की पूरी कहानी।
28 साल के इस आदमी ने चाय बेचकर पढ़ाई की, और चार्टेड अकाउंटेंट की परीक्षा भी पास कर ली। और तो और उसे महाराष्ट्र सरकार ने अर्न एंड लर्न स्कीम का ब्रांड एंबेसडर भी बना दिया। आखिर ये व्यक्ति इस मुकाम तक कैसे पहुंचा और कैसे इतनी कामयाबी की कहानी गढ़ी। आगे की स्लाइड में पढ़े इस चायवाले की कामयाबी की पूरी कहानी।
सोलापुर जिले के छोटे से गांव में रहने वाले सोमनाथ गिरम सदाशिव पेथ पर चाय बेंचते थे उन्होंने इस साल जनवरी में चार्टेड अकाउंट की परीक्षा पास कर ली।
12वीं की परीक्षा पास करने के बाद इनके घर वालों ने इनसे पढ़ाई छोड़ने के लिए कहा। घर वालों की इतनी हैसियत नहीं थी कि इनकी पढ़ाई का खर्च वो उठा सकें। वो चाहते थे कि बेटा कोई छोटा-मोटा काम करके घर चलाने में मदद करे। लेकिन इनके सिर पर तो पढ़ाई का जुनून सवार था जो इन्हें पढ़ाई छोड़ने ही नहीं दे रहा था।
सोमनाथ ने ठान लिया कि वो पढ़ाई करेंगे और एक सफल इंसान बनकर ही रहेंगे। वो पूणे चले आए और अपने गांव के ही एक दोस्त मनोज शेंडे के यहां रुके। मनोज प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी के लिए पुणे आए थे। पूणे आकर सोमनाथ ने अपने लिए पार्टटाइम जॉब ढूढना शुरु किया। लेकिन जॉब मिलना इतना आसान कहां था। काफी मशक्कत के बाद भी उन्हें कोई नौकरी न मिल पाई।
उनकी समस्या देख कर मनोज उन्हें घुमाने ले गए और टी-स्टॉल दिखाया। साथ ही उन्हें सलाह दी कि उन्हें भी एक टी-स्टॉल चलाना चाहिए। सोमनाथ को ये आइडिया बहुत पसंद आया और बहुत ही जल्द उन्होंने एक टीस्टॉल लगा लिया।
कुछ ही दिनों में उनका टी स्टॉल लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया। कमाई का एक हिस्सा वो अपने परिवार के लिए भेजते थे। उनका ये बिजनेस अच्छी कमाई भी करने लगा था। उनके टीस्टॉल पर कुछ पढ़े लिखे ग्राहक आते थे जिनकी बातचीत उन्हें पढ़ाई के लिए और ज्यादा प्रेरित करती थी।
उनमें से कुछ ने उन्हें श्री शाहू मंदिर महाविद्यालय से बी.कॉम करने का सुझाव दिया। उन्हें ये सुझाव बहुत पसंद आया और उन्होंने अपना बी.कॉम पूरा कर लिया। पढ़ाई का सिलसिला थमने न पाए इसलिए उन्होंने एम.कॉम करने का निर्णय लिया। उन्होंने गरवरे कॉलेज में एडमिशन ले लिया।
12वीं की परीक्षा पास करने के बाद इनके घर वालों ने इनसे पढ़ाई छोड़ने के लिए कहा। घर वालों की इतनी हैसियत नहीं थी कि इनकी पढ़ाई का खर्च वो उठा सकें। वो चाहते थे कि बेटा कोई छोटा-मोटा काम करके घर चलाने में मदद करे। लेकिन इनके सिर पर तो पढ़ाई का जुनून सवार था जो इन्हें पढ़ाई छोड़ने ही नहीं दे रहा था।
सोमनाथ ने ठान लिया कि वो पढ़ाई करेंगे और एक सफल इंसान बनकर ही रहेंगे। वो पूणे चले आए और अपने गांव के ही एक दोस्त मनोज शेंडे के यहां रुके। मनोज प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी के लिए पुणे आए थे। पूणे आकर सोमनाथ ने अपने लिए पार्टटाइम जॉब ढूढना शुरु किया। लेकिन जॉब मिलना इतना आसान कहां था। काफी मशक्कत के बाद भी उन्हें कोई नौकरी न मिल पाई।
उनकी समस्या देख कर मनोज उन्हें घुमाने ले गए और टी-स्टॉल दिखाया। साथ ही उन्हें सलाह दी कि उन्हें भी एक टी-स्टॉल चलाना चाहिए। सोमनाथ को ये आइडिया बहुत पसंद आया और बहुत ही जल्द उन्होंने एक टीस्टॉल लगा लिया।
कुछ ही दिनों में उनका टी स्टॉल लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया। कमाई का एक हिस्सा वो अपने परिवार के लिए भेजते थे। उनका ये बिजनेस अच्छी कमाई भी करने लगा था। उनके टीस्टॉल पर कुछ पढ़े लिखे ग्राहक आते थे जिनकी बातचीत उन्हें पढ़ाई के लिए और ज्यादा प्रेरित करती थी।
उनमें से कुछ ने उन्हें श्री शाहू मंदिर महाविद्यालय से बी.कॉम करने का सुझाव दिया। उन्हें ये सुझाव बहुत पसंद आया और उन्होंने अपना बी.कॉम पूरा कर लिया। पढ़ाई का सिलसिला थमने न पाए इसलिए उन्होंने एम.कॉम करने का निर्णय लिया। उन्होंने गरवरे कॉलेज में एडमिशन ले लिया।
लेकिन अब उनके लिए पढ़ाई और काम में संतुलन बनाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए उन्होंने काम के घंटे कम कर दिए। पूरे दिन मेहनत के बाद वो थक कर चूर हो जाते थे। मगर फिर भी रात दो बजे तक पढ़ाई करते थे। ये खुद को सजा देने जैसा था।
उनके कॉलेज वाले उनकी स्थिति से वाकिफ थे इसलिए उन्होंने उन्हें अटेंडेंस की छूट दे दी। वो बताते हैं कि मेरे एक प्रोफेसर ने मुझे चार्टेड अकाउंटेंसी फ्रिम के बारे में बताया और शीतल एम साहा से मिलवाया। तब पहली बार मुझे इस पेशे के बारे में पता चला। शीतल ने उन्हें अपनी कंपनी में इंटर्नशिप दे दी और उन्हें सीए करने के लिए प्रेरित किया। चार बार असफल होने के बाद अंत में उन्होंने पांचवी बार में ये परीक्षा पास की।
सोमनाथ अपनी सपलता का श्रेय अपने दोस्त मनोज और शीतल एम शाहा को देते हैं। उनकी सफलता पर उनके घर वालों को क्या रुख था? ये पूछने पर वो बताते है कि 'उन्हें तो पता ही नहीं है कि सी.ए होता क्या है। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं कहां काम कर रहा हूं और क्या काम कर रहा हूं। मैं ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाऊं उसी में उनकी खुशी है।'
अब सोमनाथ खुद की प्रैक्टिस के बारे मे सोच रहें हैं। लेकिन फिलहाल उनकी अपनी टी-स्टॉल को बंद करने की कोई योजना नहीं है। वो अपने गांव के दोस्तों को वो टी-स्टॉल संभालने के लिए दे देंगे, जिससे उनके बिजनेस से कोई और अपना भविष्य बना सके।
उम्मीद है इस चायवाले की सक्सेस स्टोरी आपको आगे बढ़ने और जीवन में कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देगी। आपको ये कहानी कैसी लगी, अपनी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स में देना न भूलें। आप चाहें तो इसे सोशल मीडिया पर शेयर भी कर सकते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग कहानी से प्रेरित हो सकें।
उनके कॉलेज वाले उनकी स्थिति से वाकिफ थे इसलिए उन्होंने उन्हें अटेंडेंस की छूट दे दी। वो बताते हैं कि मेरे एक प्रोफेसर ने मुझे चार्टेड अकाउंटेंसी फ्रिम के बारे में बताया और शीतल एम साहा से मिलवाया। तब पहली बार मुझे इस पेशे के बारे में पता चला। शीतल ने उन्हें अपनी कंपनी में इंटर्नशिप दे दी और उन्हें सीए करने के लिए प्रेरित किया। चार बार असफल होने के बाद अंत में उन्होंने पांचवी बार में ये परीक्षा पास की।
सोमनाथ अपनी सपलता का श्रेय अपने दोस्त मनोज और शीतल एम शाहा को देते हैं। उनकी सफलता पर उनके घर वालों को क्या रुख था? ये पूछने पर वो बताते है कि 'उन्हें तो पता ही नहीं है कि सी.ए होता क्या है। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं कहां काम कर रहा हूं और क्या काम कर रहा हूं। मैं ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाऊं उसी में उनकी खुशी है।'
अब सोमनाथ खुद की प्रैक्टिस के बारे मे सोच रहें हैं। लेकिन फिलहाल उनकी अपनी टी-स्टॉल को बंद करने की कोई योजना नहीं है। वो अपने गांव के दोस्तों को वो टी-स्टॉल संभालने के लिए दे देंगे, जिससे उनके बिजनेस से कोई और अपना भविष्य बना सके।
उम्मीद है इस चायवाले की सक्सेस स्टोरी आपको आगे बढ़ने और जीवन में कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देगी। आपको ये कहानी कैसी लगी, अपनी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स में देना न भूलें। आप चाहें तो इसे सोशल मीडिया पर शेयर भी कर सकते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग कहानी से प्रेरित हो सकें।
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