15.6.16

पृथिका ने जीती दुनिया, 25 साल की उम्र में बनी पहली ट्रांसजेंडर पुलिस अफसर

Prithika Yashini :first transgender police officer

परिस्थितियों ने किसे छोड़ा है। इनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। इनके ट्रांसजेंडर होने की वजह से इन्हें बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी और परिस्थितियों से लड़कर जीत हासिल की। सफलता तक पहुंचने के बाद भी जीत हाथ से फिसलती हुई दिखाई दे रही थी। लेकिन कानूनी लड़ाई लड़कर इन्होंने उसे भी पार कर लिया। ये कहानी है के. पृथिका यशिनी की जो 25 साल की उम्र में पहली ट्रांसजेंडर पुलिस अफसर बनीं। 

लेकिन पुलिस अफसर बनने के लिए उन्हें बहुत सी लड़ाईयां लड़नी पड़ी। ट्रांसजेंडर होना उनके राह में कई मुश्किलें लेकर आया। उन्हें अपना परिवार तक छोड़ना पड़ा। उन्हें पता था कि उन्हें दो लड़ाइयां लड़नी हैं, एक अपने शरीर के प्रति लोगों की सोच बदलनी के लिए और दूसरी कुछ बन के दिखाने के लिए। 

उन्हें दो लड़ाइयां लड़नी थीं, एक अपने शरीर के प्रति लोगों की सोच बदलनी के लिए और दूसरी कुछ बन के दिखाने के लिए


जब पृथिका का जन्म हुआ था तो उनके घर वालों ने उनका नाम प्रदीप कुमार रखा था। लिंग परिवर्तन के बाद इन्होंने अपना नाम पृथिका यशिनी रखा। पृथिका अपने किशोरावस्था को याद करके सहम सी जाती हैं। वो बताती हैं कि 'मैं बहुत कंफ्यूज थी और पढ़ाई पर ध्यान भी नहीं दे पाती थी। यहां तक कि मुझे अपने माता पिता को भी ये बताते हुए डर लग रहा था कि मैं क्या हूं। मुझे लोगों के मजाक उड़ाए जाने का भी डर था।' 

जब ये बात उन्होंने परिवार वालों के सामने रखी तो घर वालों ने दवाइयों से लेकर मंदिर और बाबाओं तक की शरण ली। लेकिन वो लड़का थी ही नहीं से बात इनके परिवार वालों को अब भी समझ नहीं आ रही थी। अंतत: इनके घर वालों को इनका लिंग परिवर्तन करवाना पड़ा। समाज में माता-पिता की बदनामी न हो इसलिए उन्होंने घर तक छोड़ दिया। लेकिन मुसीबत का सिलसिला तो अब शुरु होने वाला था जिससे वो अनजान थीं। हर मकान मालिक ने उन्हें अपना घर किराए पर देने से मना कर दिया। वो आंखों में आंसू के साथ बताती हैं कि 'मुझे वो दिन याद है जब मुझे पूरी रात कोयमबेडु बस स्टेशन पर गुजारनी पड़ी'। लेकिन उस स्थिति में भी उन्होंने हिम्मत से काम लिया।

आगे भी इन्हें कई मुश्किलों का सामना करना था। जब इन्होंने पुलिस अफसर बनने के लिए आवेदन किया तो लिंग के कॉलम में दो विकल्प थे। एक पुरुष और दूसरा महिला। महिला का विकल्प चुनने पर इनका आवेदन निरस्त कर दिया गया क्योंकि इनका नाम और ये विकल्प मेल नहीं खाते थे। लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी और उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। न्यायालय का फैसला इनके पक्ष में आया। इन्होंने अपने हक की लड़ाई तो लड़ी ही, साथ ही साथ कोर्ट द्वारा ट्रांसजेंडर्स को तीसरे कैटेगरी में रखने के बाद अपने जैसी दूसरी ट्रासजेंडर्स को भी उनका हक दिलवाया। ट्रासजेंडर को बोझ मानने वाले लोगों को भी इब शायद उन पर फक्र महसूस हो।
 

अगर आपका बच्चा दूसरे बच्चों से अलग है तो उसे इसी रूप में स्वीकार करें


उन्होंने खुद से ये वादा किया था कि वो अपनी इसी पहचान के साथ जीकर दिखाएंगी। वो बताती हैं कि जब वो इंटरव्यू के लिए गईं तो वहां भी इन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्हें अब पूरी तरह से लगने लगा था कि वो अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर नहीं जी पाएंगी। और हुआ भी कुछ ऐसा सब कुछ सही रहने के वावजूद भी उन्हें अपने बचपन का सपना पूरा करने में 6 साल का समय लग गया। इन 6 सालों में उन्होंने महिलाओं के हॉस्टल वार्डन का काम किया। इस साल फरवरी में उन्होंने सब-इंस्पेक्टर के पोस्ट के लिए अप्लाई किया जिसे तमिलनाडु यूनिफॉर्म्ड सर्विस रिक्रूटमेंट बोर्ड ने निरस्त कर दिया क्योंकि उस समय कोई थर्ड कैटेगरी का विकल्प नहीं था। उन्होंने पूरी लड़ाई लड़ी और अंत में जीत हातिल की।  

पृथिका का सपना ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए कुछ करने और उन्हें समाज में मान सम्मान दिलाने का है। वो हर माता-पिता को सलाह देती हैं कि 'अगर आपका बच्चा दूसरे बच्चों से अलग है तो उसे इसी रूप में स्वीकार करें'। 

अपने दम पर सफलता के शिखर पर पहुंचने वाली पृथिका को हमारी ओर से ढेरों शुभकामनाएं।  

उम्मीद है पृथिका की सक्सेस स्टोरी से आपको आगे बढ़ने और जीवन में कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिलेगी। आपको ये कहानी कैसी लगी, अपनी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स में देना न भूलें। आप चाहें तो इसे सोशल मीडिया पर शेयर भी कर सकते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग कहानी से प्रेरित हो सकें।

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