16.8.16

family management tips from mahabharat in hindi

महाभारत से समझें, कैसे बनाए बच्चों का सुनहरा भविष्य

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समाज और देश-दुनिया की महत्वपूर्ण इकाई है परिवार जबकि परिवार की शुरुआत होती है दाम्पत्य से। परिवार की सम्पत्ति होती है संतान। अगर यह कहें कि संतान के बिना समाज का कोई अस्तित्व ही नहीं है तो कोई अचरज नहीं है। अपना परिवार बढ़ाना या संतान का उत्पादन करना सिर्फ व्यक्तिगत ही नहीं बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यह कार्य साधारण नहीं बल्कि बड़ा ही महत्वपूर्ण और चुनौती वाला है।

किसी भी युवक या युवति को माता-पिता बनने की जिम्मेदारी को उठाने के लिए आगे आने से पहले हर तरह से तैयार हो जाना चाहिए। पति तथा पत्नी दोनों की शारीरिक, मानसिक और आर्थिक स्थिति इस लायक हो कि वे संतान और परिवार की जिम्मेदारी को बखूबी निभा सकें , तभी उन्ंहे इस दिशा में आगे कदम बढ़ाना चाहिए। स्वयं और परिवार की स्थिति तो ध्याान में रखना ही चाहिये साथ ही देश, समय और परिस्थितियों का भी ध्यान करना ही चाहिए। गलत स्थान, अनुचित समय और विपरीत परिस्थितियों में संतान का जन्म लेना भी समस्याओं को बढ़ावा देता है।

परिवार का भविष्य संतानों के संस्कार और उनकी परवरिश पर ही निर्भर करता है। बच्चों के लालन-पालन के लिए सिर्फ सुख और सुविधाओं की ही आवश्यकता नहीं होती। अभावों में भी बच्चों को अच्छे संस्कार दिए जा सकते हैं। जब संतानें संस्कारवान और सभ्य होंगी तो परिवार सफल होगा। अगर अधिक लाड़-प्यार में संतानों को बिगाड़ दिया जाए तो परिवार को टूटने में देर नहीं लगेगी।

महाभारत में कौरव और पांडवों में क्या फर्क था। कौरव महलों की सुख-सुविधाओं में पले थे और पांडव जंगल में। फिर भी पांडव नायक हुए और कौरव खलनायक। पांडवों को उनकी मां कुंती ने अकेले ही जंगल में पाला। कोई सुख-सुविधा नहीं। जबकि कौरवों को धृतराष्ट्र और गांधारी ने महलों में पाला। फिर भी आप फर्क देखिए। अपने बच्चों को हमेशा हर चीज सुलभ ना कराएं, कभी-कभी अभावों में जीना भी सिखाएं। अभाव हम में किसी वस्तु को पाने की लालसा भरते हैं। उसके लिए परिश्रम करना सिखाते हैं।

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