जिस उम्र में कैंची-छुरी पकड़ने में बच्चों के हाथ कंपकपाते हैं, उस उम्र में उसने वो कारनामा कर दिखाया कि पूरी दुनिया में उसकी वाहवाही हो गई। सब हैरान भी थे लेकिन उसके लिए शुभचिंतक भी थे। वो उसके लिए दुआएं करने लगे।
वो बच्चा भी इस कदर जुनूनी था कि परिपक्वता की कसौटी धड़ाधड़ पार करता गया और महज सात साल की उम्र में सर्जन बन गया। एक ऐसा सर्जन जिसे देखकर कोई यकीन नहीं कर पा रहा था। लेकिन एक दिन अपने से एक साल बड़ी लड़की की उंगली का ऐसा ऑपरेशन किया कि चिकित्सा जगत भी स्तब्ध रह गया।
इस बच्चे पर वो जुमला सटीक बैठता है कि प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती। कच्ची उम्र में किए गए इस बच्चे के सारे कारनामों को जानेंगे तो दातों तले उंगलिया दबा लेंगे।
ये कहानी है अकृत प्राण जसवाल की। अकृत की उम्र और उसके कामों को देख कोई भी यही कहेगा कि इस बच्चे पर ऊपर वाले की रहमत है। ये बच्चा गॉड गिफ्टेड है। उसकी क्षमताओं, उसके जज्बे, उसके जुनून की बुनियाद पर खड़ी उसकी पूरी की पूरी सक्सेस स्टोरी पढ़ कर आप आत्मविश्वास से भर जाएंगे।
5 साल की उम्र में ही पढ़ने लगा शेक्सपीयर की किताबें
23 अप्रैल 1993 को हिमाचल के नुरपुर में जब इस बच्चे की किलकारियां गूंजी तब किसी को ये इल्म भी नहीं था कि उनके घर में आम नहीं बल्कि एक असाधारण और विलक्षण प्रतिभा वाला बच्चा पैदा हुआ है। अकृत ने कम उम्र में ही बोलना और पढ़ना-लिखना सीख लिया। उसकी हरकतों से मां बाप समझ चुके थे कि उनका बेटा दूसरे बच्चों से अलग है।
वो इतने प्रतिभाशाली थे कि 5 साल की उम्र में ही शेक्सपीयर की किताबें पढ़ने लगे थे। हालांकि अकृत की रुचि शुरू से ही मेडिकल क्षेत्र में थी। लेकिन सब उस वक्त ये देख दंग रह गए जब उसने अपनी पहली सर्जरी को महज सात वर्ष की उम्र में अंजाम दिया।
अकृत ने आठ साल की एक लड़की की कटी हुई उंगली का सफल ऑपरेशन किया था। उस लड़की के घर वाले अपनी बेटी का इलाज डॉक्टर से कराने की हैसियत नहीं रखते थे। इस सर्जरी ने अकृत को अपने शहर का मेडिकल जीनियस बना दिया।
वो इतने प्रतिभाशाली थे कि 5 साल की उम्र में ही शेक्सपीयर की किताबें पढ़ने लगे थे। हालांकि अकृत की रुचि शुरू से ही मेडिकल क्षेत्र में थी। लेकिन सब उस वक्त ये देख दंग रह गए जब उसने अपनी पहली सर्जरी को महज सात वर्ष की उम्र में अंजाम दिया।
अकृत ने आठ साल की एक लड़की की कटी हुई उंगली का सफल ऑपरेशन किया था। उस लड़की के घर वाले अपनी बेटी का इलाज डॉक्टर से कराने की हैसियत नहीं रखते थे। इस सर्जरी ने अकृत को अपने शहर का मेडिकल जीनियस बना दिया।
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