हौसले की उड़ान बिना परों के होती है। बेशक़ तिनके का भी सहारा न हों जूनून उफनते पानी को पार कर ही जाता है। कुछ ऐसी ही कहानी है हमारे आज के नायक, विश्वास की। जिनका खुद में विश्वास उन्हें लाख मुश्किलों के बीच से निकाल कर आज दुनियां के शिखर पर ले आया है।
विश्वास ने दोनों हाथ न होने के बाबजूद अंतर्राष्ट्रीय तैराक प्रतिस्पर्धा में तीन गोल्ड मैडल जीते हैं। हाल ही में कनाडा में आयोजित स्पीडो केन एम पैरा-स्विमिंग चैम्पियनशिप 2016 में चार श्रेणियों में भाग लिया और तीन श्रेणियों में स्वर्ण पदक जीते हैं।
26 वर्षीय, विश्वास ने बटरफ्लाई, बैकस्ट्रोक और ब्रीस्टस्ट्रोक श्रेणियों में देश को सुनहरा पदक दिलाया है। विश्वास ने पिछले साल बोगलवी में पैरा-स्विमिंग चैम्पियनशिप में भी तीन सिल्वर मैडल जीते थे।
विश्वास के. एस. के दोनों हाथ दस साल की उम्र में एक दुर्घटना में शरीर से अलग कर दिए गए, उसी हादसे में विश्वास ने अपने पिता को भी खो दिया।
विश्वास के. एस. के दोनों हाथ दस साल की उम्र में एक दुर्घटना में शरीर से अलग कर दिए गए, उसी हादसे में विश्वास ने अपने पिता को भी खो दिया।
कोलार में हुए उस हादसे को याद करते हुए विश्वास ने द हिन्दू को बताया, “मेरे पिता सत्यनारायण मूर्ति कृषि विभाग में क्लर्क थे, आज से तकरीबन 16 साल पहले मैं नए घर की सीमेंट से बनी दीवारों पर पानी डाल रहा था, उसी वक़्त मेरा पैर फिसला और मैं बिजली के तारों पर गिर गया। मुझे बचाने के लिए मेरे पिता दौड़कर पहुंचे तो उन्हें भी तेज झटके लगे। इस हादसे में उनकी मृत्यु हो गयी। दो महीने कोमा में रहने के बाद मैं बच तो गया लेकिन मैंने अपने दोनों हाथ खो दिए।”
पिता को खोने के बाद विश्वास, परिवार सहित बेंगलूरु में रहने लगे। यहां विश्वास ने बी. कॉम की पढाई की। उसके साथ में नौकरी भी करते रहे। उनकी रूचि तैराकी में हुई तो उनके परिवार और दोस्तों की मदद से उन्होंने तैराकी सीखना शुरू किया। विश्वास परिवार और दोस्तों के शुक्रगुज़ार हैं कि उन्होंने, उनका हर कदम पर साथ दिया। दोस्त उन्हें अपने साथ स्विमिंग, डांसिंग, और कुंग फू सीखने के लिए ले जाते रहे।
विश्वास ने तैराकी में कड़ी मेहनत की और प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेना शुरू कर दिया। विश्वास की निरन्तर लगन और मेहनत रंग लाई और उन्हें अन्तर्राष्टीय स्तर पर पहुंच दिया।
विश्वास के इस सफ़र में दो गैरसरकारी संस्थाओं ‘आस्था’ और ‘बुक अ स्माइल’ ने अपना सहयोग देकर उन्हें प्रोफेशनल स्विमर बना दिया। इन संस्थाओं ने प्रशिक्षण से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तक पूरी मदद की और विश्वास को उनके सपने के करीब पहुंचने में मदद की।
विश्वास ने तैराकी में कड़ी मेहनत की और प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेना शुरू कर दिया। विश्वास की निरन्तर लगन और मेहनत रंग लाई और उन्हें अन्तर्राष्टीय स्तर पर पहुंच दिया।
विश्वास के इस सफ़र में दो गैरसरकारी संस्थाओं ‘आस्था’ और ‘बुक अ स्माइल’ ने अपना सहयोग देकर उन्हें प्रोफेशनल स्विमर बना दिया। इन संस्थाओं ने प्रशिक्षण से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तक पूरी मदद की और विश्वास को उनके सपने के करीब पहुंचने में मदद की।
“आगे क्या?” इस सवाल के जबाब में विश्वास कहते हैं, “2020 में टोक्यो में होने वाले ओलम्पिक खेलों में भाग लेना मेरा सपना है।”
‘द बेटर इंडिया’ उनके इस जुनून को सलाम करता है और उन्हें ढेरों शुभकामनाएं इस यकीन के साथ कि वे ओलम्पिक में भी कई स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन करेंगे।
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