बस कंडक्टर की बेटी हैं पहलवान साक्षी मलिक, ऐसी है उनकी पर्सनल लाइफ
रोहतक.महिला रेसलर साक्षी मलिक ने रियो ओलंपिक में कांस्य पदक हासिल कर इतिहास रच दिया है। उन्होंने महिलाओं की फ्रीस्टाइल कुश्ती के 58 किलोग्राम भार वर्ग में भारत के लिए पदक जीता। ये रियो ओलंपिक में भारत का पहला पदक है। साक्षी ओलंपिक में भारत के लिए पदक जीतने वाली पहली महिला पहलवान बन गई हैं। पिता हैं दिल्ली में कंडक्टर...
-साक्षी के पिता सुखबीर मलिक (दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन) डीटीसी दिल्ली में बतौर कंडक्टर नौकरी करते हैं।
- जबकि उनकी मां सुदेश मलिक रोहतक में आंगनबाड़ी सुपरवाइजर है।
- मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साक्षी ने महज 12 साल की उम्र से रेसलिंग की शुरुआत की थी।
- उनकी मां नहीं चाहती थी कि बेटी पहलवान बने। उनका मानना था कि पहलवानों में बुद्धि कम होती है।
- बता दें कि साक्षी के परिवार में उसके दादा भी पहलवान थे। वह उन्हीं के नक्शे कदम पर है।
कैसे करती हैं प्रैक्टिस
- साक्षी मलिक रोजाना 6 से 7 घंटे प्रैक्टिस करती हैं।
- ओलिंपिक की तैयारी के लिए वे पिछले एक साल से रोहतक के साई(स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) होस्टल में रह रही थीं।
- उन्हें वेट मेनटेन करने के लिए बेहद कड़ा डाइट चार्ट फॉलो करना पड़ता था।
- कड़ी प्रैक्टिस के बावजूद वे पढ़ाई में अच्छे मार्क्स ला चुकी हैं।
- रेसलिंग की वजह से उनके कमरे में गोल्ड, सिल्वर व ब्रांज मेडल का ढेर लगा है।
- रेसलिंग की वजह से उनके कमरे में गोल्ड, सिल्वर व ब्रांज मेडल का ढेर लगा है।
पर्सनल लाइफ में ऐसी हैं साक्षी
- साक्षी की मां सुदेश मिलक ने बताया कि पहलवान बनने के बाद साक्षी चुप-चुप रहती है। अब गंभीर भी हो गई है।
- कुछ कहना हो या करना हो, वह पूरी तरह गंभीर नजर आती है। पहले ऐसी नहीं थी।
- बचपन में बेहद चुलबुली, नटखट, शरारती हुआ करती थी। दादी चंद्रावली की लाडली थी। पहलवान बनने के बाद वह एकदम बदल गई है।
- जब साक्षी तीन महीने की थी, तक नौकरी के लिए उसे अकेला छोड़ना पड़ा।
- वह अपने दादा बदलूराम व दादी चंद्रावली के पास मौखरा में तीन साल रही।
- छोटी उम्र में ही उसे काम करने का बहुत शौक था। अब भी घर आती है तो रसोई में मदद करती है।
- साक्षी की मां सुदेश मिलक ने बताया कि पहलवान बनने के बाद साक्षी चुप-चुप रहती है। अब गंभीर भी हो गई है।
- कुछ कहना हो या करना हो, वह पूरी तरह गंभीर नजर आती है। पहले ऐसी नहीं थी।
- बचपन में बेहद चुलबुली, नटखट, शरारती हुआ करती थी। दादी चंद्रावली की लाडली थी। पहलवान बनने के बाद वह एकदम बदल गई है।
- जब साक्षी तीन महीने की थी, तक नौकरी के लिए उसे अकेला छोड़ना पड़ा।
- वह अपने दादा बदलूराम व दादी चंद्रावली के पास मौखरा में तीन साल रही।
- छोटी उम्र में ही उसे काम करने का बहुत शौक था। अब भी घर आती है तो रसोई में मदद करती है।
साक्षी का सफरनामा
गोल्ड- 2011, जूनियर नेशनल, जम्मू
ब्रॉन्ज- 2011, जूनियर एशियन, जकार्ता
सिल्वर-2011, सीनियर नेशनल, गोंडा
गोल्ड- 2011, ऑल इंडिया विवि, सिरसा
गोल्ड- 2012, जूनियर नेशनल, देवघर
गोल्ड-2012, जूनि. एशियन, कजाकिस्तान
ब्रॉन्ज- 2012, सीनियर नेशनल,गोंडा
गोल्ड- 2012, ऑल इंडिया विवि अमरावती
गोल्ड- 2013, सीनियर नेशनल, कोलकाता
गोल्ड- 2014, देन सतलज मेमोरियल, यूएसए
गोल्ड- 2014, ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी, मेरठ
ब्रॉन्ज- 2011, जूनियर एशियन, जकार्ता
सिल्वर-2011, सीनियर नेशनल, गोंडा
गोल्ड- 2011, ऑल इंडिया विवि, सिरसा
गोल्ड- 2012, जूनियर नेशनल, देवघर
गोल्ड-2012, जूनि. एशियन, कजाकिस्तान
ब्रॉन्ज- 2012, सीनियर नेशनल,गोंडा
गोल्ड- 2012, ऑल इंडिया विवि अमरावती
गोल्ड- 2013, सीनियर नेशनल, कोलकाता
गोल्ड- 2014, देन सतलज मेमोरियल, यूएसए
गोल्ड- 2014, ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी, मेरठ
साक्षी मालिक की मां नहीं चाहती थीं कि उनकी बेटी रेसलर बने।
साक्षी की मां का मानना था कि पहलवानों में बुद्धि कम होती है।
साक्षी के पिता डीटीसी में बस कंडक्टर हैं।
सांखी ने बेहद कम उम्र से रेसलिंग की शुरुआत की थी।
पीएम मोदी के साथ साक्षी
अभी साक्षी की उम्र महज 23 साल है।
साक्षी ने कई कॉम्पिटीशन में हिस्सा लिया है।
इस तरह प्रैक्टिस करती हैं साक्षी
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