आखिर लड़कियां पढ़ाई में क्यों मार जाती हैं बाजी? खुल गया राज
एग्ज़ाम में लड़कियों ने मारी बाज़ी' अब यह अख़बारों की घिसी पिटी लाइन हो गई है। अच्छे रिज़ल्ट के बाद लड़कियो की जश्न मनाती तस्वीर भी हमें बार-बार देखने को मिलती है।
ब्रिटेन की बात करें तो वहां भी लड़कियां न केवल 'ए-लेवल' (आरलैंड में हायर्स) की पढ़ाई में, बल्कि वास्तव में हर स्तर की पढ़ाई में लड़कों से आगे हैं।
यूनिवर्सिटी में दाख़िला लेने के लिए ए लेवल का रिज़ल्ट ही सबसे बड़ी योग्यता हो गई है। ऐसे में इस बात से कोई हैरानी नहीं हो सकती कि अब यूनिवर्सिटी तक पहुंचने में महिलाएं भी पुरुषों के बराबर हैं।
इस साल ब्रिटेन में क़रीब 80 फ़ीसदी लड़कियों का रिज़ल्ट 'ए' से 'सी' ग्रेड तक रहा है, जबकि 75 फ़ीसदी लड़के ही ऐसा रिज़ल्ट ला पाए।
इस साल यूनिवर्सिटी में दाख़िले के लिए जो आवेदन आए, उसके आंकड़ों के मुताबिक पूरे ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी में दाख़िला चाहने वाले पुरुषों और महिलाओं में अब तक का सबसे बड़ा अंतर है। इंग्लैंड में तो ऐसी छात्राओं की तादात लड़कों के मुक़ाबले 36 फ़ीसदी ज़्यादा है। इसमें स्कॉटलैंड और वेल्स में भी अब तक का सबसे बड़ा अंतर है, जबकि उत्तरी आयरलैंड में 2009 के बाद यह सबसे बड़ा अंतर है।
यूनिवर्सिटी और कॉलेज एडमिशन सर्विस की प्रमुख मैरी कुर्नक कुक इस बात से बहुत ज़्यादा चिंतित हैं। वो चाहती हैं कि इसके लिए पूरे देश में एक बड़ा अभियान चलाया जाए।
यूनिवर्सिटी में दाख़िला लेने के लिए ए लेवल का रिज़ल्ट ही सबसे बड़ी योग्यता हो गई है। ऐसे में इस बात से कोई हैरानी नहीं हो सकती कि अब यूनिवर्सिटी तक पहुंचने में महिलाएं भी पुरुषों के बराबर हैं।
इस साल ब्रिटेन में क़रीब 80 फ़ीसदी लड़कियों का रिज़ल्ट 'ए' से 'सी' ग्रेड तक रहा है, जबकि 75 फ़ीसदी लड़के ही ऐसा रिज़ल्ट ला पाए।
इस साल यूनिवर्सिटी में दाख़िले के लिए जो आवेदन आए, उसके आंकड़ों के मुताबिक पूरे ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी में दाख़िला चाहने वाले पुरुषों और महिलाओं में अब तक का सबसे बड़ा अंतर है। इंग्लैंड में तो ऐसी छात्राओं की तादात लड़कों के मुक़ाबले 36 फ़ीसदी ज़्यादा है। इसमें स्कॉटलैंड और वेल्स में भी अब तक का सबसे बड़ा अंतर है, जबकि उत्तरी आयरलैंड में 2009 के बाद यह सबसे बड़ा अंतर है।
यूनिवर्सिटी और कॉलेज एडमिशन सर्विस की प्रमुख मैरी कुर्नक कुक इस बात से बहुत ज़्यादा चिंतित हैं। वो चाहती हैं कि इसके लिए पूरे देश में एक बड़ा अभियान चलाया जाए।
वो कहती हैं, "अगर ऐसी स्थिति आगे भी बनी रही, तो 10 साल के भीतर ही यूनिवर्सिटी में दाख़िले के लिए ग़रीबों और अमीरों के बीच जो अंतर है, उससे बड़ा अंतर महिलाओं और पुरुषों में हो जाएगा।"
उनका अनुमान है, "अगर इस अंतर को ठीक नहीं किया गया तो इस साल जितने लड़के और लड़कियां पैदा होंगे, उनमें लड़कों की तुलना में 75 फ़ीसद ज़्यादा लड़कियां यूनिवर्सिटी तक पहुंचेंगी।
तो आख़िर इस अंतर के पीछे सबसे बड़ी वजह क्या है? क्या आज लड़कियां, लड़कों की तुलना में पढ़ने में बेहतर हैं और लड़कों में आगे बढ़ने की ललक कम हो गई है? या फिर इसके पीछे उससे भी गंभीर कोई बात है?
आगे की पढ़ाई के लिए लड़कियां बड़ी संख्या में लड़कों को पीछे छोड़ रही हैं। यह उनके जीसीएई में बेहतर रिज़ल्ट की वजह से हो रहा है।
ब्रिटेन में साल 2015 में क़रीब 55 फ़ीसद छात्राओं ए-लेवल स्टैंडर्ड क्वालिफ़िकेशन हासिल किया, जबकि ऐसा 45 फ़ीसद छात्र की कर पाए इसलिए यूनिवर्सिटी में जाने की परीक्षा से पहले ही लड़कियों की संख्या लड़कों के मुक़ाबले ज़्यादा रही।
लेकिन यह अंतर काफ़ी पहले शुरू हो जाता है। ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक स्कूल शुरू करते ही लड़कियों के मुक़ाबले दोगुना लड़के पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं।
उनका अनुमान है, "अगर इस अंतर को ठीक नहीं किया गया तो इस साल जितने लड़के और लड़कियां पैदा होंगे, उनमें लड़कों की तुलना में 75 फ़ीसद ज़्यादा लड़कियां यूनिवर्सिटी तक पहुंचेंगी।
तो आख़िर इस अंतर के पीछे सबसे बड़ी वजह क्या है? क्या आज लड़कियां, लड़कों की तुलना में पढ़ने में बेहतर हैं और लड़कों में आगे बढ़ने की ललक कम हो गई है? या फिर इसके पीछे उससे भी गंभीर कोई बात है?
आगे की पढ़ाई के लिए लड़कियां बड़ी संख्या में लड़कों को पीछे छोड़ रही हैं। यह उनके जीसीएई में बेहतर रिज़ल्ट की वजह से हो रहा है।
ब्रिटेन में साल 2015 में क़रीब 55 फ़ीसद छात्राओं ए-लेवल स्टैंडर्ड क्वालिफ़िकेशन हासिल किया, जबकि ऐसा 45 फ़ीसद छात्र की कर पाए इसलिए यूनिवर्सिटी में जाने की परीक्षा से पहले ही लड़कियों की संख्या लड़कों के मुक़ाबले ज़्यादा रही।
लेकिन यह अंतर काफ़ी पहले शुरू हो जाता है। ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक स्कूल शुरू करते ही लड़कियों के मुक़ाबले दोगुना लड़के पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं।
इस शोध से पता चला है कि इंग्लैंड में प्रारंभिक कक्षा के 80 हज़ार लड़के पूरा वाक्य तक नहीं बोल पाते हैं, वो हिदायतों को नहीं समझते हैं और चिंता की बात तो यह है कि वो बच्चे आगे भी बेहतर नहीं हो पाते हैं।
इन तथ्यों के पीछे एक मसला यह भी है कि प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों में ज़्यादातर महिलाएं हैं और मदद करने वाली मांएं हैं इसलिए लड़कों के पिछड़ने की पहेली बहुत ज़्यादा पेचीदा नहीं है।
उच्च शिक्षा में लड़कों के पिछड़ने की वजह पर हायर एजुकेशन पॉलिसी इंस्टीच्युट के शोध के मुताबिक, लड़कियों और लड़कों में अक्सर स्कूल वर्क को लेकर अलग नज़रिया होता है।
इस संस्थान के निदेशक निक रिलमै कहते हैं, "ओईसीडी देशों में लड़कियां हर हफ़्ते होम वर्क करने में लड़कों से एक घंटे से भी ज़्यादा वक़्त देती हैं।" उनके मुताबिक, लड़के कंप्यूटर गेम खेलने में ज़्यादा और स्कूल के बाहर पढ़ाई में कम वक़्त देते हैं।
ग्रेटर लंडन के डागन्नम के सिडनी रसेल स्कूल के हेड टीचर रह चुके रोजर लेटन कहते हैं, लड़कों में यह भावना ज़्यादा होती है कि कम काम करके भी वो बच सकते हैं। वो अपना ज़्यादा वक़्त दूसरे मनोरंजन में लगाते हैं जबकि लड़कियां इसके महत्व को जल्दी ही समझ जाती हैं"।
महिलाओं के आगे बढ़ने के पीछे एक वजह विश्वविद्यालयों में भी आए कई बदलाव हैं। 1990 के दशक में पुराने पॉलिटेक्निक कॉलेजों को यूनिवर्सिटी बना देने से भी यूनिवर्सिटी में महिलाओं की संख्या बढ़ी है।
हिलमैन कहते हैं, नर्सिंग या टीचिंग जैसे हुनर सीखने का काम परंपरागत रूप से महिलाएं करती रही हैं और इसके लिए पहले डिग्री की ज़रूरत नहीं होती थी। लेकिन जब से यह बदला है, तभी से यूनिवर्सिटी में महिलाओं की तादात बहुत बढ़ गई है"।
इन तथ्यों के पीछे एक मसला यह भी है कि प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों में ज़्यादातर महिलाएं हैं और मदद करने वाली मांएं हैं इसलिए लड़कों के पिछड़ने की पहेली बहुत ज़्यादा पेचीदा नहीं है।
उच्च शिक्षा में लड़कों के पिछड़ने की वजह पर हायर एजुकेशन पॉलिसी इंस्टीच्युट के शोध के मुताबिक, लड़कियों और लड़कों में अक्सर स्कूल वर्क को लेकर अलग नज़रिया होता है।
इस संस्थान के निदेशक निक रिलमै कहते हैं, "ओईसीडी देशों में लड़कियां हर हफ़्ते होम वर्क करने में लड़कों से एक घंटे से भी ज़्यादा वक़्त देती हैं।" उनके मुताबिक, लड़के कंप्यूटर गेम खेलने में ज़्यादा और स्कूल के बाहर पढ़ाई में कम वक़्त देते हैं।
ग्रेटर लंडन के डागन्नम के सिडनी रसेल स्कूल के हेड टीचर रह चुके रोजर लेटन कहते हैं, लड़कों में यह भावना ज़्यादा होती है कि कम काम करके भी वो बच सकते हैं। वो अपना ज़्यादा वक़्त दूसरे मनोरंजन में लगाते हैं जबकि लड़कियां इसके महत्व को जल्दी ही समझ जाती हैं"।
महिलाओं के आगे बढ़ने के पीछे एक वजह विश्वविद्यालयों में भी आए कई बदलाव हैं। 1990 के दशक में पुराने पॉलिटेक्निक कॉलेजों को यूनिवर्सिटी बना देने से भी यूनिवर्सिटी में महिलाओं की संख्या बढ़ी है।
हिलमैन कहते हैं, नर्सिंग या टीचिंग जैसे हुनर सीखने का काम परंपरागत रूप से महिलाएं करती रही हैं और इसके लिए पहले डिग्री की ज़रूरत नहीं होती थी। लेकिन जब से यह बदला है, तभी से यूनिवर्सिटी में महिलाओं की तादात बहुत बढ़ गई है"।
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