कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 19 अक्टूबर, बुधवार को है। उज्जैन के ज्योतिषी पं. प्रफुल्ल भट्ट के अनुसार, इस बार करवा चौथ पर कई शुभ योग बन रहे हैं।
शुक्र-चंद्रमा का ये असर होगा महिलाओं पर
पं. भट्ट के अनुसार, इस बार करवा चौथ पर शुक्र और चंद्रमा का दृष्टि संबंध भौतिक सुख और समृद्धि देने वाला रहेगा। इससे प्रेम संबंध मधुर होंगे। दाम्पत्य जीवन में सुख बढ़ेगा। अपोजिट जेंडर आकर्षित होगा। महिलाओं में सुन्दर दिखने और सजने की इच्छा अधिक रहेगी। वाणी में मधुरता और विचारों में कल्पनाशीलता भी रहेगी। शनि और चंद्रमा साथ होने से पति-पत्नी करवा चौथ पर किए गए वादे निभाएंगे।
8.50 पर होगा चंद्रोदय
बुधवार की रात करीब 8.50 पर चंद्रोदय होगा। बुधवार को रोहिणी नक्षत्र होने से शुभ नाम का योग बन रहा है। रोहिणी चंद्रमा की सबसे प्रिय पत्नी है। रोहिणी नक्षत्र में चंद्रोदय होने से पति-पत्नी में प्रेम बढ़ेगा और घर में सुख-समृद्धि आएगी। बुधवार को चतुर्थी तिथि होना विशेष शुभ माना गया है क्योंकि इस तिथि के स्वामी गणेश हैं। उच्च राशि का चंद्रमा अपने ही नक्षत्र में होने से महिलाओं के लिए विशेष शुभ रहेगा। इसके प्रभाव से महिलाओं का अत्मबल बढ़ेगा। गणेश जी की पूजा करने से बुद्धि और वाणी में लाभ होगा।
पूरे दिन रहेगा सर्वार्थसिद्धि योग
गुरु की नौवीं दृष्टि चंद्रमा पर होने से इस दिन की गई पूजा-पाठ सिद्ध होगी और उसका विशेष फल मिलेगा। इसके साथ सर्वार्थसिद्धि योग बनने से दिन और खास हो जाएगा। सर्वार्थसिद्धि योग होने से करवा चौथ खरीदारी के लिए भी खास रहेगा। गुरु के प्रभाव से दाम्पत्य जीवन में सुख, शांति और प्रेम रहेगा।
करवा चौथ की संपूर्ण व्रत विधि व कथा जानने के लिए आगे की स्लाइड पर क्लिक करें-
करवा चौथ व्रत की विधि इस प्रकार है-
करवा चौथ पर सुबह स्नान करके अपने पति की लंबी आयु, बेहतर स्वास्थ्य व अखंड सौभाग्य के लिए संकल्प लें और यथाशक्ति निराहार (बिना कुछ खाए-पिए) रहें। शाम को पूजन स्थान पर एक साफ लाल कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय व भगवान श्रीगणेश की स्थापना करें। पूजन स्थान पर मिट्टी का करवा भी रखें। इस करवे में थोड़ा धान व एक रुपए का सिक्का रखें। इसके ऊपर लाल कपड़ा रखें। सभी देवताओं का पंचोपचार पूजन करें।
लड्डुओं का भोग लगाएं। भगवान श्रीगणेश की आरती करें। जब चंद्रमा उदय हो जाए तो चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य दें। इसके बाद अपने पति के चरण छुएं व उनके मस्तक पर तिलक लगाएं। पति की माता (अर्थात अपनी सासूजी) को अपना करवा भेंट कर आशीर्वाद लें। यदि वे जीवित न हों तो परिवार की किसी अन्य सुहागन महिला को करवा भेंट करें। इसके बाद परिवार के साथ भोजन करें।
जानिए चतुर्थी तिथि का महत्व
शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान श्रीगणेश हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि ने भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए तप किया था एवं चंद्रोदय के समय उनका दर्शन प्राप्त किया था। तब प्रसन्न होकर भगवान श्रीगणेश ने चतुर्थी तिथि को वर दिया था कि तुम मुझे सदा प्रिय रहोगी और तुमसे मेरा वियोग कभी नही होगा। चतुर्थी तिथि के दिन जो महिलाएं व्रत रख मेरा पूजन करेंगी, उनका सौभाग्य अखंड रहेगा और कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होगी।
शास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक मास की दोनों चतुर्थी तिथि के दिन व्रत रख भगवान श्रीगणेश का पूजन करना चाहिए। यदि ये संभव न हो तो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (करवा चौथ) तिथि को विधि-विधान पूर्वक व्रत रख श्रीगणेश का पूजन करने से पूरे वर्ष की चतुर्थी तिथि के व्रतों का फल प्राप्त होता है। जिस तरह चतुर्थी तिथि का श्रीगणेश से कभी वियोग नही होता, उसी प्रकार इस तिथि के दिन व्रत कर श्रीगणेश का पूजन करने से स्त्रियों का अपने पति से कभी वियोग नही होता ।
करवा चौथ व्रत की कथा श्रीवामन पुराण में है, जो इस प्रकार है-
किसी समय इंद्रप्रस्थ में वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी लीलावती से उसके सात पुत्र और वीरावती नामक एक पुत्री पैदा हुई। वीरावती के युवा होने पर उसका विवाह विधि-विधान के साथ कर दिया गया। जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई, तो वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ बड़े प्रेम से करवा चौथ का व्रत शुरू किया, लेकिन भूख-प्यास से वह चंद्रोदय के पूर्व ही बेहोश हो गई। बहन को बेहोश देखकर सातों भाई व्याकुल हो गए और इसका उपाय खोजने लगे।
उन्होंने अपनी लाड़ली बहन के लिए पेड़ के पीछे से जलती मशाल का उजाला दिखाकर बहन को होश में लाकर चंद्रोदय निकलने की सूचना दी, तो उसने विधिपूर्वक अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। ऐसा करने से उसके पति की मृत्यु हो गई। अपने पति के मृत्यु से वीरावती व्याकुल हो उठी। उसने अन्न-जल का त्याग कर दिया। उसी रात्रि में इंद्राणी पृथ्वी पर विचरण करने आई। ब्राह्मण पुत्री ने उससे अपने दु:ख का कारण पूछा, तो इंद्राणी ने बताया- हे वीरावती। तुमने अपने पिता के घर पर करवा चौथ का व्रत किया था, पर वास्तविक चंद्रोदय के होने से पहले ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया, इसीलिए तुम्हारा पति मर गया।
अब उसे पुनर्जीवित करने के लिए विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत करो। मैं उस व्रत के ही पुण्य प्रभाव से तुम्हारे पति को जीवित करूंगी। वीरावती ने बारह मास की चौथ सहित करवाचौथ का व्रत पूर्ण विधि-विधानानुसार किया, तो इंद्राणी ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार प्रसन्न होकर चुल्लू भर पानी उसके पति के मृत शरीर पर छिड़क दिया। ऐसा करते ही उसका पति जीवित हो उठा। घर आकर वीरावती अपने पति के साथ वैवाहिक सुख भोगने लगी। समय के साथ उसे पुत्र, धन, धान्य और पति की दीर्घायु का लाभ मिला।
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