चमत्कारों से भरी हैं इस ज्योतिर्लिंग की कहानियां, रुद्राक्ष जैसा दिखाई देता है शिवलिंग
द्वारिका के पूर्वोत्तर में भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है। शिवपुराण के अनुसार, जो भी व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति और समर्पण के भाव से इस ज्योतिर्लिंग की पूजा-अर्चना करता है, उसे संसार के सभी सुख मिलते हैं।
कैसे स्थापित हुआ नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
कहा जाता है कि सुप्रिय नाम का एक वैश्य भगवान शिव का भक्त था। वह हर समय भगवान शिव की भक्ति में लगा रहता था। एक बार सुप्रिय नाव से कहीं जा रहा था, तभी अचानक दारुक नाम का राक्षस वहां आ गया। दारुक ने नाव पर सवार सभी लोगों को बंदी बना कर अपने बंदीगृह में डाल दिया। बंदीगृह में भी सुप्रिय भगवान शिव की भक्ति करता रहा। जब दारुक को इस बात का पता चला तो वह सुप्रिय को ऐसा करने से रोका, लेकिन सुप्रिय ने उसकी बात नहीं मानी और अपनी भक्ति में लीन रहा। इस बात से दारुक को बहुत गुस्सा आया और उसने अपने सेवकों को सुप्रिय का वध करने को कहा। सुप्रिय डरा नहीं और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करता रहा। जैसे ही दारुक के सेवक सुप्रिय का वध करने पहुंचे, उस बंदीगृह के एक ऊंचे स्थान पर भगवान शिव प्रकट हुए और सुप्रिय को पाशुपतास्त्र भी दिया। उस पाशुपतास्त्र से सुप्रिय ने दारुक सहित सभी राक्षसों का वध कर दिया। मृत्यु के पहले दारुक अपनी मुक्ति के लिए भगवान शिव और माता पार्वती से प्रार्थना करने लगा। उसके प्रार्थना करने पर भगवान ने उस उसकी मुक्ति का और इस स्थान को उसी के नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया। सुप्रिय ने भगवान शिव से हमेशा के लिए इसी स्थान पर रहने की प्रार्थना की, जिसके फलस्वरूप भगवान शिव नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से उसी स्थान पर स्थित हो गए।
अपने आप ज्योतिर्लिंग दक्षिणमुखी हो गया
नागेश्वर मंदिर का ज्योतिर्लिंग दक्षिणमुखी है, जबकि गोमुख पूर्वमुखी। ऐसा होने के पीछे एक रोचक कथा प्रचलित है। कहा जाता है नामदेव नाम का एक भक्त भगवान शिव के सामने खड़ा होकर भजन कर रहा था। पीछे खड़े भक्तों ने उसे एक ओर हटकर भजन गाने को कहा, ताकि उन्हें भगवान शिव के दर्शन हो सके। भक्तों के ऐसा कहने पर नामदेव ने उनसे ऐसी दिशा के बारे में पूछा जहां भगवान शिव न हो, वह उस ओर खड़ा होकर भजन करता रहा। लोगों ने गुस्से में नामदेव को एक तरफ कोने में धकेल दिया। नामदेव वहीं कोने में खड़ा होकर भगवान शिव के भजन गाने लगा। थोड़ी देर में शिवलिंग का मुंह अपने आप उस ओर हो गया, जिस ओर खड़े होकर नामदेव भजन कर रहा था। यह देखकर सभी भक्त हैरान रह गए। तब से लेकर आज तक भगवान शिव का यह नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दक्षिणमुखी ही है।
रुद्राक्ष के जैसा दिखाई देता है यहां का शिवलिंग
यहां के शिवलिंग की आकृति बड़ी ही अद्भुत है। इस शिवलिंग पर छोटे-छोटे चक्कर खुदे हुए है, जिसकी वजह से यह शिवलिंग रुद्रक्ष के जैसे दिखाई देता है।
भगवान शिव की विशाल मूर्ति भी है यहां
नागेश्वर मंदिर वास्तुशिल्प और खूबसूरती का एक बहुत अच्छा उदाहरण है। दारुक वन में प्रवेश करते ही भगवान शिव की एक मूर्ति दिखती है। यह मूर्ति लगभग साठ फीट ऊंची है। इसमें भगवान शिव ध्यान करने की मुद्रा में बैठे हुए हैं।
यहां नहीं है शिव के सामने नंदी
नागेश्वर ज्योतिर्लिग की एक और विशेषता है। भगवान शिव के लगभग सभी मंदिरों में शिवलिंग के सामने उनके वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित होती ही है, लेकिन नागेश्वर मंदिर बाकी मंदिरों से अलग है। यहां पर शिवलिंग के सामने नंदी की कोई प्रतिमा नहीं है। मुख्य मंदिर के पीछे नंदी का नंदिकेश्वर का नाम से एक अलग से मंदिर बना हुआ है।
मुख्य मंदिर के आस-पास है बारह ज्योतिर्लिंग
मुख्य मंदिर की चारों दिशाओं में भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग के छोटे-छोटे मंदिर बने हुए है। नागेश्वर मंदिर के एक बड़े भाग में भगवान शिव और पार्वती की बहुत ही सुंदर छवि स्थित है। उस छवि में माता पार्वती रुठी हुई नजर आती हैं और भगवान शिव शिव उन्हें शांत करने का प्रयास करते दिखाई देते हैं।
0 Comment to "Storys and facts related to Nageshvar Jyotirling"
Post a Comment